Thursday, April 30, 2020

BEBASI(Short Story)


बेबसी 



 
बेबसी क्या है ?
क्या लज़ीज़ खाने की ख़्वाहिश होने पर सिर्फ़ दाल रोटी का मुहय्या हो पाना बेबसी है या फिर एक बड़ा अफ़सर बनने की ख़्वाहिश होने के बावजूद एक अदनी सी मुलाज़मत पाना बेबसी है या फिर बेबसी अपने किसी क़रीबी दोस्त के बराबर असबाब इकठ्ठा ना कर पाने का नाम है ?
इस सवाल का जवाब ढ़ूँढ़ते ढ़ूँढ़ते मैं एक सूनसान सड़क पे चला जा रहा था तभी एक छोटा सा मासूम बच्चा चीथड़ों में लिपटा हुआ फुटपाथ के कोने में एक बड़े दावतख़ाने के बाहर पड़े दफ़्ती के डब्बे में कुछ तलाशता नज़र आया। मैं हैरानी से उसको देखने लगा कुछ देर बाद उस बच्चे के चेहरे पे चमक आ गयी और उसने डब्बे की झूठन में से मिली एक रोटी अपने हाँथ में लेकर पास बैठी अपनी माँ की तरफ़ लहलहाई। माँ भी बच्चे की कामयाबी पे चहक उठी और उसने शुक्र की नियत से आसमान की तरफ़ देखा। दोनों ने उसी एक रोटी को मिल बाँट के खाया और फुटपाथ पे सो गए।
बेबसी की ये मुख़्तलिफ़ शक्ल देखने के बाद मेरा सवाल और गहरा हो गया की आख़िर बेबसी क्या है ?
तभि आज़ान कि आवाज़ ने मेर ध्यान अपनी तरफ़ खींचा मेरी नज़र एक 80-85 साल के बुज़ुर्ग पर पड़ी जो अपनी लाठी के सहारे जल्द से जल्द मस्जिद में पहुँचना चाहते थे नमाज़ निकल जाने की बेबसी और बेचैनी उनके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रही थी।
सुबह कि लाली अपने पैर पसार चुकी थी मैं वही पास की दुकान पे बैठकर चाय पीने लगा ठीक उसी वक़्त बच्चों को स्कूल ले जाने वाली गाड़ी सामने से गुज़रीं ,रिक्शे वाला बदन पे मैली कुचैली बनियान पहने आँखों मे नींद समेटे रिक्शा खींच रहा था । एकाएक उसने रिक्शा रोक दिया और होटल से चाय मँगवाने का इशारा किया , एक नन्हा सा बच्चा जिसने कुछ देर पहले ही मेरे सामने पड़ी टेबल साफ की थी और मुझे साहब कह के बुलाया था भागता हुआ चाय लेकर गया । रिक्शे वाले ने चाय पी और पलट कर अपने रिक्शे मे बैठे बच्चों को हसरत भरी निगाह से देखा फिर उस नन्हें बच्चे के सर पर हान्थ फेरा और अपनी मंज़िल की तरफ रवाना हुआ , उसके जाते ही बच्चा ज़ोर से चिल्लाया “ अब्बा शाम को मेरे लिए एलिफ़ेंट वाली बुक लाना”। ये बात सुनकर रिक्शे वाले के माथे से चंद बूंदें ज़मीन पर गिरीं , पता नहीं वो पसीना था या बेबसी के आँसू मगर उन बूँदों मे अपने बच्चे की ख़्वाहिश पूरा ना कर पाने की नमी साफ़ नज़र आ रही थी।
ये सब देखते ही पता नहीं क्यूँ मेरे दिल मे एक अजीब सी हलचल पैदा हो गयी। साहब लव्ज़ एक नश्तर की तरह मेरे ज़मीर को कुरेद रहा था , एलिफ़ेंट और बुक दो ऐसे लव्ज़ थे जिन्हे सुनने के बाद उस बच्चे को एक अदद किताब ख़रीद कर ना दे पाना शायद मेरी बेबसी थी, या फिर अल्लाह के बताए हुए वक़्त पर उसके सामने सर ना झुका पाना मेरी बेबसी थी या फिर उस नन्हें बच्चे को खाने का एक ताज़ा डिब्बा ना दिला पाना मेरी बेबसी थी ।
बेबसी की ये क़िस्म शायद सबसे ज़्यादा डरावनी थी क्यूँ कि ये मेरे अंदर कहीं गहराई मे मौजूद थी और इसको बाहर निकालने कि जद्दोजहद करने को मैं तैयार नहीं था । गुजरते वक़्त के साथ किसी ख़तरनाक ज़हर कि तरह फैलती बेबसी मुझे एक ग़ैर जज़्बाती इन्सान बनने पे मजबूर कर रही थी जिसकी आरज़ू ख़ुद के लिए एक ऐसा जहान पैदा करने कि थी जहाँ दर्द का नाम ओ निशान नहीं हो । मगर मेरी कम निगाही दिन रात बदन मे फैलते बेबसी के इस ज़हर को समझ पाने मे कामयाब नहीं हो पा रही थी। अब मुझे ये डर सताने लगा था कि कहीं मेरे अश्क़ दिल के अन्दर दौड़ते एक ऐसे दरिया से तो जारी नहीं हैं जिसके तले मे एहसासों के पत्थर और जज़्बात कि लाशों के अलावा कुछ भी नहीं है।
बेबसी क्या है इस सवाल का जवाब मुझे मिल चुका था । मैं ये समझ चुका था कि बेबसी का नाम मुफ़लिसी या भूक नहीं है ,बल्कि बेबसी ख़ुदा कि अता कि हुई लाखों नेमतों को तक़सीम ना कर पाने का नाम है, बेबसी ख़ुदा के आगे सर ना झुका पाना है । और दुनिया मे सबसे जादा बेबस वो लोग नहीं हैं जिनके सर पे छत नहीं, बदन पे कपड़े नहीं या घरों मे खाना नहीं बल्कि वो लोग हैं जिनके पास ये सब कुछ है मगर वो ख़ुदा कि अता की गयी इन सब नेमतों को तक़सीम कर पाने के हुनर से नावाक़िफ़ हैं।
इक़बाल अहमद(Iqbal Ahmad)
Difficult Words
बेबसी-Helplessness,लज़ीज़-Tasty,मुहय्या-Available,अदनी-Small/Unimportant,असबाब-Luxuries,मुलाज़मत-Employment,दावतख़ाने–Restaurants,मुख़्तलिफ़–Different,आज़ान-Muslim call to prayer,बुज़ुर्ग-Old Age Person,नमाज़-Islamic Prayer,ख़्वाहिश-Desire,नश्तर-Arrow/Pointed Arm,ज़मीर-Conscience,ग़ैर-जज़्बाती-Emotionless,अश्क़-Tears,जद्दोजहद- Struggle,मुफ़लिसी-Poverty,नेमतों-Gift/Beneficence,तक़सीम-Distribution,हुनर-Talent,नावाक़िफ़-Not Known.

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